किसकी थी ग़लती, थी किसकी ख़ता
किसने किस बात की दी है किसको सज़ा
कटा जो एक अंग किसी का तो दर्द कब किस में बंटा है
अरे छोड़ो भी यारो, अब इन बातो में क्या रखा है ।।
अब मिलेंगे कहाँ अब कहाँ बात होगी
मिले जो किसी मोड़ पर तो अजनबियों सी मुलाकात होगी
लफ़्ज़ों की भला बिसात थी क्या, हमे तो एहसासों ने ठगा है
अरे छोड़ो भी यारो, अब इन बातो में क्या रखा है ।।
जो देती तक़दीर दगा तो हम हार मान लेते
जो कहते आप इक बार हम राह बदल लेते
तोड़ दिए सपने हज़ारो यहाँ तो अपनों ने ही ठगा है
अरे छोड़ो भी यारो, अब इन बातो में क्या रखा है ।।
जिन आँखों में बसते थे कभी वो अब अजनबियों सी घूरती है
जिस राह से गुजरते थे हम, ये साँसे उन्हें ढूंढती है
एक वक़्त था जब उन्होंने इस चेहरे में रब को देखा है
अरे छोड़ो भी यारो, अब इन बातो में क्या रखा है ।।
कभी एक मुस्कराहट पर तो जान देते थे
कभी हर आहात को पहचान लेते थे
सिर्फ इसी रिस्ते से उन्होंने मुह फेर रखा है
अरे छोड़ो भी यारो, अब इन बातो में क्या रखा है ।।
ना हुँ मैं मंदबुद्धि, ना समझ तू ख़ुद को शातिर
खामोशी से सहा है सब, बस दोस्ती के ख़ातिर
अभी तूने मेरी दुश्मनी का स्वाद कहां चखा है,
अरे छोड़ो भी यारो, अब इन बातों में क्या रखा है ।।
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